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Monday, July 25, 2011

क्षमा प्रार्थी


ऐ पलाश और अमलतास     
ओ प्यारे गुलमोहर
क्षमा कर दो तुम सब मुझे
सौन्दर्य तुम्हारा पहचाना नहीं
जब भी देखा मैंने तुम्हे
सिर्फ बौटनी ही याद आई
तुम्हाराकिंगडम फै़मिली जाना
जीनस स्पीशीज़ ही जान पाई
जब भी हरे पत्तों को देखा
फ़ोटोसिन्थेसिस याद आया
देख तुम्हारे पुष्पों को
झट इनफ्लोरेशेंस ढूँढने लगी
पेटल्स सेपल्सगिना
एपीकैलिक्स देखने लगी
साहित्योद्यान में ज्यों रखा कदम
महत्व तुम्हारा जान गई
कवियों के दिल की धड़कन थे
सर्वत्र सिर्फ तुम ही तुम थे
अब दिखता है मुझको भी
तुम सब कितने सुन्दर हो
क्षमा कर दो सब भूल तुम
लेखनी में मेरी आ बसो तुम|

ऋता शेखरमधु


-- परिचय

नाम-  ऋता शेखर मधु

शिक्षा- एम एस सी{वनस्पति शास्त्र}, बी एड.
रुचि- अध्यापन एवं लेखन
अनुभूति के २०.६.२०११(पलाश विशेषांक)में पाँच हाइकु प्रकाशित  


7 comments:

  1. ऋता शेखर ‘मधु’ की उत्कृष्ट रचना पढ़वाने का आभार...

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  2. आदरणीया ऋता शेखर ‘मधु’ जी
    सादर अभिवादन !

    पलाश, अमलतास और गुलमोहर आपकी बात मान कर आपकी लेखनी में आ बसे हैं …

    तब ही तो सुंदर रचना का सृजन आपके माध्यम से हुआ है …

    स्वीकार करें
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. kya baat hai jee anand aa gaya behad anootha prayog badhai

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  4. Not fine ,refined poetry , very delicious ,good creation , .thanks

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  5. Respcted Rita Ji,
    I admire your Haiga and Haiku.
    This is for the first time that I read
    your well versed poem.
    You know this is a complete poem
    scientifically and literally.

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  6. बहुत बढ़िया लगा! रीता जी की कविता मुझे बेहद पसंद आया! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  7. रीता जी की ज्ञान-विज्ञान से भाव-जगत की यह यात्रा -क्षमा प्रार्थी कविता के माध्यम से जीवन्त हो उठी है । रही बात साज्सज्जा की , उसमें तो हरदीप जी का कोई जवाब ही नहीं । दोनों विज्ञान की पारखियों को बधाई

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